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Articles by बिल क्राऊडर

क्रोध का ह्रदय

ग्वेर्निका, पाब्लो पिकासो की सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक पेंटिंग, 1937 में उस नाम के एक छोटे से स्पेनिश  शहर के विनाश का एक आधुनिकतावादी चित्रण था। स्पेनिश क्रांति और द्वितीय विश्व युद्ध के बढ़ने के दौरान, नाजी जर्मनी के विमानों को स्पेन की राष्ट्रवादी ताकतों द्वारा बमबारी अभ्यास के लिए शहर का उपयोग करने की अनुमति दी गई थी। नागरिक ठिकानों पर बमबारी की अनैतिकता पर चिंतित एक वैश्विक समुदाय का ध्यान आकर्षित करते हुए, इन विवादास्पद बम विस्फोटों ने कई लोगों की जान ले ली। पिकासो की पेंटिंग ने दर्शनीय संसार की कल्पनाओं को पकड़ा और एक दूसरे को नष्ट करने की मानवता की क्षमता के बारे में बहस के लिए उत्प्रेरक बन गया।

हम में से जिन्हें इस बात के लिए आत्मविश्वासी है कि हम जानबूझकर कभी खून नहीं बहाएंगे, हमें यीशु के शब्दों को याद रखने की ज़रूरत है, "तुम सुन चुके हो, कि पूर्वकाल के लोगों से कहा गया था कि, 'हत्या न करना’, और ‘जो कोई हत्या करेगा वह कचहरी में दण्ड के योग्य होगा।' परन्तु मैं तुम से कहता हूं, कि जो कोई अपने भाई पर क्रोध करेगा, वह कचहरी में दंड के योग्य होगा .." (मत्ती 5:21-22)। ह्रदय एक हत्यारा हो सकता है बिना वास्तव में हत्या किये हुए।

जब दूसरों के प्रति अनियंत्रित क्रोध हमें भस्म करने का खतरा पैदा करता है, तो हमें पवित्र आत्मा की सख्त आवश्यकता है हमारे  हृदयों को भरने और नियंत्रित करने के लिए  ताकि हमारी मानवीय प्रवृत्तियों को आत्मा के फल से बदला जा सके (गलातियों 5:19-23)। फिर, प्रेम, आनंद और शांति हमारे संबंधों को चिह्नित कर सकते हैं।

घर को बनाना

19वीं शताब्दी में, भारत में सबसे महत्वाकांक्षी निजी गृह निर्माण परियोजना शुरू हुई। कार्य जारी रहा जब तक की—12 साल बाद महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ III के "शाही परिवार निवास" का समापन हुआ। उसका परिणाम गुजरात के वडोदरा में लक्ष्मी विलास महल था। वह भारत में सबसे बड़ा निजी निवास महल है और माना जाता है की लंदन में बकिंघम महल से लगभग 4 गुना बड़ा है। उसमें 170 कमरे हैं  जिसमें अच्छी तरह से बनाये हुए कट्टीभचित्र, झूमर, कलाकृतियां और लिफ्ट के साथ जो की 500 एकड़ में बनाया गया है। 

यह परियोजना, महत्वाकांक्षी के रूप में था, लेकिन मत्ती 16 में यीशु ने अपने चेलों को जिस “इमारत” के इरादे के बारे में बताया उसकी तुलना में कुछ नहीं था। पतरस का यह पुष्टीकरन करने के बाद की यीशु ही “परमेश्वर का पुत्र मसीह है”(16), यीशु ने कहा, “और मैं भी तुझ से कहता हूँ की तू पतरस है, और मैं इस पत्थर पर अपनी कलीसिया बनाऊंगा, और अधोलोक के फटक उस पर प्रबल न होंगे.”(18)। ) जबकि धर्मशास्त्री "चट्टान" की पहचान पर बहस करते हैं, लेकिन यीशु के इरादों के बारे में कोई बहस नहीं है। वह पृथ्वी की छोर तक फ़ैलाने के लिए अपनी कलीसिया बनाता (मत्ती 28:19-20), दुनिया भर के हर राष्ट्र और जातीय समूह के लोगों के साथ। (प्रकाशितवाक्य 5:9)। 

इस भवन परियोजना की लागत? क्रूस पर यीशु मसीह के अपने लहू का बलिदान (प्रेरितों 20:28)। उनके “भवन” के सदस्यों के रूप में (इफिसिओं 2:11), इतनी बड़े दाम से खरीदे हुए, हम उनके प्रेममय बलिदान का जश्न मनाएं और इस महान कार्य में उनके साथ शामिल हों। 

उतरने का स्थान

मृग परिवार का एक सदस्य इम्पाला दस फीट ऊंची और तीस फीट लंबाई तक कूदने में सक्षम है। यह एक अविश्वसनीय करतब है, और इसमें कोई संदेह नहीं है कि अफ्रीकी जंगली में इसके जीवित रहने के लिए यह आवश्यक भी है। फिर भी, चिड़ियाघरों में पाए जाने वाले कई इम्पाला बाड़ों में, आप पाएंगे कि जानवरों को एक दीवार से सटाकर रखा जाता है जो केवल तीन फीट लंबी होती है। इतनी नीची दीवार में ये एथलेटिक जानवर कैसे रह सकते हैं? पर यह संभव होता है क्योंकि इम्पाला तब तक नहीं कूदेंगे जब तक कि वे यह नहीं देख पाय की वें कहाँ उतरेंगे। दीवार इम्पलास को बाड़े के अंदर रखती है क्योंकि वे नहीं देख सकते कि दूसरी तरफ क्या है।

इंसानों के रूप में, हम सब भी कुछ अलग नहीं हैं। हम आगे बढ़ने से पहले किसी स्थिति का परिणाम जानना चाहते हैं। हालाँकि, विश्वास का जीवन शायद ही कभी इस तरह से काम करता है। कुरिन्थ की कलीसिया को लिखते हुए, पौलुस ने उन्हें याद दिलाया, "हम रूप को देखकर नहीं, पर विश्वास से चलते है" (२ कुरिन्थियों ५:७)।

यीशु ने हमें प्रार्थना करना सिखाया, "तेरी इच्छा जैसे स्वर्ग में पूरी होती है वैसे पृथ्वी पर भी हो" (मत्ती ६:१०)। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम उसके परिणामों को पहले ही जान लेंगे। विश्वास से जीने का अर्थ है उसके अच्छे उद्देश्यों पर भरोसा करना, भले ही वे उद्देश्य रहस्य में डूबे हों।

जीवन की अनिश्चितताओं के बीच, हम उसके अटूट प्रेम पर भरोसा कर सकते हैं। कोई फर्क नहीं पड़ता कि जीवन हमारे सामने क्या लेकर आये, "हम उसे प्रसन्न करना अपना लक्ष्य बना लेते हैं" (२ कुरिन्थियों ५:९)।

सिखाने योग्य एक आत्मा

न केवल दूसरों की राय बल्कि राय देने वाले व्यक्ति पर भी हमला करना (दोष ढूंढना) दुखद रूप से “सामान्य” हो गया है। यह शिक्षा सम्बंधी क्षेत्रों में भी सच हो सकता है। इस कारण से, मैं दंग रह गया जब विद्वान और धर्मशास्त्री रिचर्ड बी हेज़ ने एक पेपर लिखा जिसमें उन्होंने वर्षों पहले अपने खुद के लिखे एक काम में संशोधन करने के लिये कमियां निकालीं । रीडिंग विद द ग्रेन ऑफ स्क्रिप्चर में हेज़ ने दिल की बड़ी विनम्रता का प्रदर्शन किया जब उन्होंने अपनी पिछली सोच को ठीक किया, जो अब सीखने के लिए अपनी आजीवन प्रतिबद्धता से ठीक हो गई है।

जब नीतिवचन की पुस्तक पेश की जा रही थी, राजा सुलैमान ने बुद्धिमान कथनों के इस संग्रह के विभिन्न उद्देश्यों को सूचीबद्ध किया। परन्तु उन उद्देश्यों के बीच में, उसने इस चुनौती को सम्मिलित किया, “बुद्धिमान उन्हें सुन कर निज ज्ञान बढ़ायें और समझदार व्यक्ति दिशा निर्देश पायें”  (नीतिवचन 1: 5)। प्रेरित पौलुस की तरह, जिसने दावा किया कि दशकों तक मसीह का अनुसरण करने के बाद भी, उसने यीशु को जानना जारी रखा (फिलिप्पियों 3: 10) सुलैमान ने बुद्धिमानों को सुनने, सीखने और बढ़ते रहने का आग्रह किया।

एक सिखाने योग्य भावना को बनाए रखने से कभी किसी को नुकसान नहीं होता। जैसे–जैसे हम बढ़ते रहना चाहते हैं और विश्वास की बातों और जीवन की बातों  के बारे में सीखते हैं, क्या हम पवित्र आत्मा को हमें सच्चाई में मार्गदर्शन करने की अनुमति दे सकते हैं, (यूहन्ना 16:13), ताकि हम अपने भले और महान परमेश्वर के आश्चर्यकर्मों को और अच्छी तरह समझ सकें।

 

अलग हट कर

नवंबर 1742 में, चार्ल्स वेस्ली द्वारा प्रचारित सुसमाचार संदेश के विरोध में इंग्लैंड के स्टैफोर्डशायर में दंगा भड़क उठा। ऐसा लगता था कि चार्ल्स और उनके भाई जॉन चर्च की कुछ पुरानी परंपराओं को बदल रहे थे, और यह शहर के कई लोगों को अस्वीकार था।

जब जॉन वेस्ली ने दंगे के बारे में सुना, तो वह अपने भाई की मदद करने के लिए स्टैफोर्डशायर पहुंचे। जल्द ही एक अनियंत्रित भीड़ ने उस जगह को घेर लिया जहाँ जॉन ठहरे हुए थे। साहसपूर्वक, वह उनके अगुवों के साथ आमने-सामने मिले, उनके साथ इतनी शांति से बात करी कि एक-एक करके उनका गुस्सा शांत हो गया।

जॉन वेस्ली की सौम्य और शांत आत्मा ने एक संभावित क्रूर भीड़ को शांत कर दिया। लेकिन यह कोई सज्जनता नहीं थी जो उनके हृदय में स्वाभाविक रूप से उत्पन्न हुई थी। बल्कि, यह उद्धारकर्ता का हृदय था जिसका वेस्ली इतनी नज़दीकी से अनुसरण करते थे। यीशु ने कहा, "मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो और मुझ से सीखो, क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूं, और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे" (मत्ती 11:29)। नम्रता का यह जूआ हमारे लिए प्रेरित पौलुस की चुनौती के पीछे सच्ची शक्ति बन गया: “अर्थात सारी दीनता और नम्रता सहित, और धीरज धरकर प्रेम से एक दूसरे की सह लो" (इफिसियों 4:2)।

हमारी मानवीयता में, ऐसी धीरजता हमारे लिए असंभव है। परन्तु हम में आत्मा के फल के द्वारा, मसीह के हृदय की नम्रता हमें अलग कर सकती है और हमें शत्रुतापूर्ण संसार का सामना करने के लिए तैयार कर सकती है। जब हम ऐसा करते हैं, तो हम पौलुस के शब्दों को पूरा करते हैं, "तुम्हारी कोमलता सब मनुष्यों पर प्रगट हो" (फिलिप्पियों 4:5)।

हमारा परमेश्वर कितना महान है!

लोगों को पहचानने के लिए उंगलियों के निशान लम्बे समय से इस्तेमाल किये गये है, पर उनके प्रतियां बनाकर धोखा दिया जा सकता है। उसी प्रकार से, मनुष्य की आंख की पुतली का पैटर्न आईडी के लिए एक विश्वसनीय स्रोत है, जब तक  कोई परिणाम गलत करने के लिए कांटेक्टलेंस पहन कर पैटर्न बदल नहीं देता। किसी व्यक्ति को पहचानने के लिए बॉयोमीट्रिक (शारीरिक चिन्ह) के उपयोग को असफल किया जा सकता है। तो, एक विशिष्ट पहचान के लक्षणों का कैसे पता चलता है?  सबकी रक्त–वाहिकाओं का पैटर्न अद्वितीय है और नकल के लिए लगभग असम्भव। आपका अपना निजी नसों का नक्शा  एक खास तरह की आपकी पहचान है जो  आपको सब से अलग करता है।

मनुष्य की ऐसी जटिलताओं पर विचार करने से उस सृष्टिकर्ता के लिए आराधना और आश्चर्य की भावना पैदा होनी चाहिए जिसने हमें बनाया है। दाउद ने हमें याद दिलाया कि “हम भयभीत और अद्भुत तरीके से बनाए गए हैं” भजनसंहिता 139:14, और यह निश्चित रूप से जश्न मनाने लायक है। वास्तव में भजन संहिता 111:2 हमें स्मरण दिलाता है: “यहोवा के काम महान हैं जो उन से प्रसन्न होते हैं वे उन पर विचार करते हैं।”

हमारे ध्यान के और भी अधिक योग्य स्वयं दिव्य निर्माता हैं। परमेश्वर के महान कार्यों का जश्न मनाते हुए, हमें उसके लिये भी जश्न मनाना चाहिए! उसके काम महान हैं लेकिन वह उससे भी बड़ा है जिससे भजनकार को प्रार्थना करने के लिए प्रेरित किया, “क्योंकि तू महान है और अद्भुत काम करता है केवल तू ही परमेश्वर है”  ( 86:10)।

आज जैसे हम परमेश्वर के कार्य की महानता पर विचार करते है, हम इस बात पर भी अचम्भा करें कि वह कौन है।

प्रार्थना का सार

जब अब्राहम लिंकन संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति बने, तो उन्हें एक खंडित राष्ट्र का नेतृत्व करने का काम सौंपा गया। लिंकन को एक बुद्धिमान नेता और उच्च नैतिक चरित्र के व्यक्ति के रूप में देखा जाता है, लेकिन उनके चरित्र का एक अन्य तत्व, शायद, बाकी सब चीजों की नींव था। वह यह समझ गए थे कि जो काम उनके हाथ में है उसके लिए वह अपर्याप्त है। उस अपर्याप्तता पर उनकी प्रतिक्रिया? लिंकन ने कहा, "मैं कई बार अपने घुटनों पर इस भारी भोझ के कारण आया कि मेरे पास और कोई जगह नहीं है जाने के लिए। मेरी अपनी बुद्धि और मुझसे सम्बंधित सब कुछ उस दिन के लिए अपर्याप्त महसूस हुआ ।”

जब हम जीवन की चुनौतियों और अपने स्वयं के सीमित ज्ञान, समझ या सामर्थ की पकड़ में आते हैं, तो हम पाते हैं, लिंकन की तरह, हम पूरी तरह से यीशु पर निर्भर हैं─जिसकी कोई सीमा नहीं है। पतरस ने हमें इस निर्भरता की याद दिलाई जब उसने लिखा, "अपनी सारी चिन्ता उसी पर डाल दो, क्योंकि उस को तुम्हारा ध्यान है" (1 पतरस 5:7)।

अपने बच्चों के लिए परमेश्वर का प्रेम, उसकी पूर्ण शक्ति के साथ, उसे वह सिद्ध व्यक्ति बनाता है जिसके पास हम अपनी कमजोरियों के साथ जा सकते है—और यही प्रार्थना का सार है। हम यीशु के पास जाते हैं यह स्वीकार करते हुए (और स्वयं) कि हम अपर्याप्त हैं और वह अनंतकाल तक के लिए प्रयाप्त है। लिंकन ने कहा कि उन्हें लगा कि उनके पास "कोई जगह नहीं जाने के लिए।" लेकिन जब हम हमारे प्रति परमेश्वर की बड़ी परवाह को समझना शुरू करते हैं, तो यह अद्भुत रूप से अच्छी खबर है। हम उसके पास जा सकते हैं!

भूला नहीं

जब हम ऐतिहासिक, अग्रणी मिशनरियों के बारे में सोचते हैं, तो चार्ल्स रेनियस (1790-1838) का नाम दिमाग में नहीं आता। शायद चाहिए। जर्मनी में जन्मे, रेनियस इस क्षेत्र के पहले मिशनरियों में से एक के रूप में तमिलनाडु के तिरुनेलवेली आए। उन्होंने 90 से अधिक गांवों में यीशु के संदेश को पहुँचाया और थोड़े समय में 3000 धर्मान्तरित हुए। उन्होंने तमिल भाषा में बाइबल  के ग्रंथों के लेखक और अनुवादक के रूप में कार्य किया, और उन्हें लोकप्रिय रूप से "तिरुनेलवेली का प्रेरित" और संस्थापकों में से एक माना जाता है। दक्षिण भारतीय चर्च के पिता।

रेनियस के राज्य सेवा के उल्लेखनीय जीवन को कुछ लोगों ने भुला दिया होगा, लेकिन उनकी आध्यात्मिक सेवा को परमेश्वर कभी नहीं भूलेंगे। वह काम भी नहीं करेंगे जो तुम परमेश्वर के लिए करते हो। इब्रानियों को लिखी चिट्ठी हमें इन शब्दों से प्रोत्साहित करती है, “परमेश्वर अन्यायी नहीं; वह तेरे काम को और उस प्रेम को न भूलेगा जैसा तू ने उस से दिखाया है, जैसा तू ने उसकी प्रजा की सहायता की है, और उसकी सहायता करता रहता है" (6:10)। परमेश्वर की विश्वासयोग्यता को कभी भी कम करके नहीं आंका जा सकता है, क्योंकि वह अपने नाम में की गई हर चीज को वास्तव में जानता और याद रखता है। और इसलिए इब्रानियों ने हमें प्रोत्साहित किया है, "उनका अनुकरण करो जो विश्वास और धीरज के द्वारा प्रतिज्ञा की हुई वस्तु के वारिस होते हैं" (v 12)।

यदि हम अपने चर्च या समुदाय में पर्दे के पीछे सेवा करते हैं, तो यह महसूस करना आसान हो सकता है कि हमारे श्रम की सराहना नहीं की गई है। हिम्मत न हारना। हमारे काम को हमारे आस-पास के लोगों द्वारा मान्यता दी जाए या पुरस्कृत किया जाए या नहीं, परमेश्वर विश्वासयोग्य है। वह हमें कभी नहीं भूलेगा।

वास्तविक आशा

1980 के दशक की शुरुआत में, भारत एक उज्ज्वल भविष्य की प्रत्याशा से भर गया था। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद अशांति के बावजूद उनके बेटे राजीव गांधी को भारी बहुमत के साथ सत्ता सँभालने के लिए वोट दिया गया था। युवा, सुशिक्षित प्रधान मंत्री ने पद ग्रहण किया, और लोगों को आराम की अवधि की आशा थी। लेकिन राष्ट्रीय अशांति के बाद भोपाल गैस त्रासदी, बोफोर्स कांड और श्रीलंका में "शांति" सैनिकों का अनुचित हस्तक्षेप हुआ। राजीव गांधी की हत्या कर दी गई और उस पहले के आशावादी समाज के स्वीकृत मानदंडों को ध्वस्त कर दिया गया। आशावाद बस पर्याप्त नहीं था, और इसके मद्देनजर मोहभंग हो गया।

फिर, 1967 में, धर्मशास्त्री जुर्गन मोल्टमैन के ए थियोलॉजी ऑफ होप (A Theology of Hope) ने एक स्पष्ट दृष्टि की ओर इशारा किया। यह रास्ता आशावाद का नहीं बल्कि आशा का रास्ता था। दोनों एक ही बात नहीं हैं। मोल्टमैन ने पुष्टि की कि आशावाद इस समय की परिस्थितियों पर आधारित है, लेकिन आशा परमेश्वर की विश्वासयोग्यता में निहित है—हमारी स्थिति चाहे जो भी हो।

इस आशा का स्रोत क्या है? पतरस ने लिखा, “हमारे प्रभु यीशु मसीह के परमेश्वर और पिता का धन्यवाद दो, जिस ने यीशु मसीह के मरे हुओं में से जी उठने के द्वारा, अपनी बड़ी दया से हमें जीवित आशा के लिये नया जन्म दिया"(1 पतरस 1:3)। हमारे विश्वासयोग्य परमेश्वर ने अपने पुत्र, यीशु के द्वारा मृत्यु पर विजय प्राप्त की है! इस सबसे बड़ी जीत की वास्तविकता हमें महज आशावाद से परे एक मजबूत, मजबूत आशा की ओर ले जाती है - हर दिन और हर परिस्थिति में।